Sunday, 2 September 2018

चोर_चोरी_से_जाये_हेरा_फेरी_से_न_जाये

साभार -आध्यात्मिक कहानियां
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           एक जंगल की राह से एक जौहरी गुजर रहा था । देखा उसने राह में । एक कुम्हार अपने गधे के गले में एक बड़ा हीरा बांधकर चला आ रहा है । चकित हुआ यह  देखकर कि ये कितना मूर्ख है । क्या इसे पता नहीं है कि ये लाखों का हीरा है और गधे के गले में सजाने के लिए बाँध रखा है। पूछा उसने कुम्हार से , "सुनो ये पत्थर जो तुम गधे के गले में बांधे हो । इसके कितने पैसे लोगे ?" कुम्हार ने कहा - "महाराज ! इसके क्या दाम । पर चलो । आप इसके आठ आने दे दो । हमनें तो ऐसे ही बाँध दिया था कि गधे का गला सूना न लगे । बच्चों के लिए आठ आने की मिठाई गधे की ओर से ल जाएँगे । बच्चे भी खुश हो जायेंगे । और शायद गधा भी कि उसके गले का बोझ कम हो गया है ।"
             पर जौहरी तो जौहरी ही था, पक्का बनिया । उसे लोभ पकड़ गया । उसने कहा आठ आने तो थोड़े ज्यादा है । तू इसके चार आने ले ले । कुम्हार भी थोड़ा झक्की था । वह ज़िद पकड़ गया कि नहीं देने हो तो आठ आने दो । नहीं देने है तो कम से कम छह आने तो दे ही दो । नहीं तो हम नहीं बेचेंगे ।
जौहरी ने कहा - "पत्थर ही तो है ।चार आने कोई कम तो नहीं ।"
            उसने सोचा थोड़ी दूर चलने पर आवाज दे देगा । आगे चला गया । लेकिन आधा फलांग चलने के बाद भी कुम्हार ने उसे आवाज न दी । तब उसे लगा । बात बिगड़ गई । नाहक छोड़ा । छह आने में ही ले लेता तो ठीक था । जौहरी वापस लौटकर आया । लेकिन तब तक बाजी हाथ से जा चुकी थी । गधा खड़ा आराम कर रहा था । और कुम्हार अपने काम में लगा था ।
जौहरी ने पूछा - "क्या हुआ ? पत्थर कहां है ?"
कुम्हार ने हंसते हुए कहा -"महाराज एक रूपया मिला है। उस पत्थर का । पूरा आठ आने का फायदा हुआ है । आपको छह आने में बेच देता तो कितना घाटा होता।" और अपने काम में लग गया ।
            पर जौहरी के तो माथे पर पसीना आ गया। उसका तो दिल बैठा जा रहा था यह सोच सोच कर कि हाय! लाखों का हीरा यूं मेरी नादानी की वजह से हाथ से चला गया ।
उसने कुम्हार से कहा - "मूर्ख ! तू बिलकुल गधे का गधा ही रहा । जानता है उसकी कीमत कितनी है । वह लाखों का था । और तूने एक रूपये में बेच दिया । मानो बहुत बड़ा खजाना तेरे हाथ लग गया ।"
उस कुम्हार ने कहा -" हुजूर मैं अगर गधा न होता तो क्या इतना कीमती पत्थर गधे के गले में बाँध कर घूमता ? लेकिन आपके लिए क्या कहूं ? आप तो गधे के भी गधे निकले । आपको तो पता ही था कि लाखों का हीरा है । और आप उस के छह आने देने को तैयार नहीं थे । आप पत्थर की कीमत पर भी लेने को तैयार नहीं हुए ।"
             यदि इन्सान को कोई वस्तु आधे दाम में भी मिले तो भी वो उसके लिए मोल भाव जरुर करेगा । क्योकि लालच हर इन्सान के दिल में होता है । कहते है न - चोर चोरी से जाये, हेरा फेरी से न जाये । जौहरी ने अपने लालच के कारण अच्छा सौदा गँवा दिया ।
             मित्रों ! धर्म का जिसे पता है उसका जीवन अगर रूपांतरित न हो तो वह उस जौहरी की भांति गधा ही है । जिन्हें पता नहीं है वे क्षमा के योग्य है लेकिन जिन्हें पता है उनको क्या कहा जाए !

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