जब सूर्य रोग कारक ग्रह हो तब उसे निम्नलिखित रोगों की संभावना होती है ,अर्थात सूर्य निम्नलिखित रोग के कारक है -
पित्त,उष्द ज्वर,(बुखार)शरीर मे जलन रहना,अपस्मार(मिर्गी) हृदय रोग,नेत्र रोग,चर्मरोग,अस्थि श्रुति,शत्रुओं से भय,अग्नि शस्त्र या विष से पीड़ा,स्त्री या पुत्रो से कष्ट,सर्प से भय।।।
चन्द्रमा से निम्नलिखित समस्याए उत्पन्न हो सकती है।।
निद्रा रोग,आलस्य,कफ,अतिसार,शीतज्वर,जल से भय,किसी भी चीज़ में रुचि होना,पीलिया,खून खराबी,।।
मंगल से होने वाली समस्या/रोग।।
तृष्णा (बहुत अधिक प्यास लगना) वायु जनित पित्त या प्रकोप ,पीतज्वर,अग्नि विष या सस्त्र से भय, कुष्ठ,नेत्र रोग ,पेट मे फोड़ा अपस्मार मज़्ज़ा से सम्बंधित रोग ,खुजली ,चमड़े में खुरदुरापन,देह भंग शरीर का कोई भाग टूट जाना अग्नि से भय,चोरों से भय,भाई मित्र पुत्रो से कलह,शत्रुओं से परेशानी,।।।
बुध उत्पन्न होने वाली समस्या।।
भ्रांति,(वहम)सोचने समझने की शक्ति में अव्यवस्था विचार में तर्क शक्ति कम हो जाए,व्यर्थ की चिंता बिना कारण भय, नेत्र रोग गले का रोग ,नासिका रोग,वात,पित्त,कफ,विष की बीमारी चरम रोग,पीलिया,दुःस्वप्न,खुजली,इत्यादि।।
बृहस्पति से होने वाले रोग/समस्या-
गुल्म पेट का फोड़ा,अंतड़ियों का ज्वर,मूर्छा ,कान के रोग,देव् स्थान सम्बन्धी पीड़ा देव् स्थान मन्दिर आदि को लेकर मुकदमे बाजी,ट्रस्ट बैंक के मामलों के कारण कलह ,अदालती कार्यवाही,अपने गुरु के साथ सम्बन्ध खराब होना।।
शुक्र से होने वाले समस्या और रोग-
रक्त की कमी के कारण पीलापन,कफ और वायु से दोष,से नेत्र रोग मधुमेह,मूत्र रोग जननेन्द्रियों आदि में रोग पेशाब करने में कठिनाई,या कष्ट, प्रोस्ट्रेट,ग्लैंड का बढ़ जाना वीर्य की कमी,वैवाहिक जीवन मे समस्या,सम्भोग सुखों में समस्या,चेहरे पर कांति हीनता शरीर का सुखना आदि रोग और समस्या शुक्र के कारण होते है।।
शनि से होने वाले रोग और समस्याए-
वात कफ के द्वारा उत्पन्न रोग,टांग में दर्द या लंगड़ाना,भ्रांति,कुक्षी(कांख में रोग)शरीर के भीतर बहुत उष्णता हो जाए,नौकरों से कष्ट,-नौकर नौकरी छोड़ कर भाग जाए या धोखा देने लगे,भार्या और पुत्र से सम्बन्धी विपत्ति,शरीर के किसी भाग में चोट लगना ,हृदय,ताप ,मानसिक चिंता परेशानी,पिशाच आदि की पीड़ा,आपत्ति,,।।
राहु से होने वाली समस्या और रोग,-
हृदय रोग,हृदय में ताप, जलन,कोढ़,दुर्मति,भ्रांति,विष के कारण उत्पन्न हुई बीमारियां ,पैर में पीड़ा या चोट,स्त्री पुत्रो को कष्ट या उनके कारण कष्ट,सर्प और पिशाचों से भय,।।
केतु से होने वाली समस्या और रोग-
शत्रुओं से भय,मानसिक चिंता और परेशानी राहु के समान केतु का भी प्रभाव होता है।।।
यदि चन्द्र सूर्य बारहवे या दूसरे स्थान में और उन पर मंगल और शनि देखते हो तो नेत्र से सम्बंधित रोग हो सकता है ।।
यदि तीसरे और ग्यारहवे घर और गुरु मंगल शनि से युत या दृष्ट हो तो सम्भवता कान का रोग हो सकता है।।
मंगल पंचम में होने से उदर रोग हो सकता है।।(कोई भी उग्र ग्रह सूर्य,मंगल,शनि,राहु,केतु,पंचम में होने से पेट से सम्बंधित समस्या उत्पन्न करता है।।
शुक्र यदि सप्तम या अष्टम में पाप प्रभाव में हो तो प्रमेह या मूत्र रोग उत्पन्न कर सकता है।।
यदि छठवे भाव भाव का स्वामी या अष्टमेश सप्तम में या छठवे भाव का स्वामी अष्टम में पाप प्रभाव में हो तो गुदा रोग हो सकता है।।।