Tuesday, 9 November 2021

लग्न दोष और लग्न दोष निवारण उपाय

 

लग्न दोष :-

 

 जन्मकुंडली में सबसे महत्वपूर्ण पार्ट जन्म कुंडली का लग्न और लग्नेश होता है। अतः जन्म कुंडली में लग्न भाव का स्वामी लग्नेश का बलवान होना अति आवश्यक होता है। क्योंकि जन्म कुंडली में लग्न भाव जातक का शरीर, चरित्र, व्यक्तित्व होता है। आज की परिचर्चा में हम जातक की जन्मकुंडली में लग्न भाव के स्वामी लग्नेश की चर्चा करते हैं। जैसा कि हम जान चुके हैं कि कुंडली में लग्नेश का बलवान होना अति आवश्यक है किंतु यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में लग्नेश बलवान नहीं हो तो वहां पर लग्न दोष का निर्माण हो जाता है। जिस कारण  जातक को अपने जीवन में सभी क्षेत्रों में प्राय दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। तो आइए जानते हैं कि जन्म कुंडली में लग्न दोष का निर्माण किस प्रकार से होता है।

 

१- लग्न भाव के स्वामी का त्रिक भाव अर्थात 6 8 12 में स्थित होना।

 

२-लग्नेश की डिग्री का कम होना।

 

३- लग्नेश का पाप कर्तरी दोष में फंसना।

 

४- लग्नेश का सूर्य से अस्त होना।

 

५- लग्नेश का नीच राशि में होना।

 

उपर्युक्त स्थिति यदि किसी भी जातक की जन्म कुंडली में लग्नेश की हो तो उस कुंडली में लग्न दोष बनता है और लगन दोष बनने वाले जातक का जीवन कष्टमय होता है।

 

 

 

 

 

 

लग्न दोष निवारण उपाय -:

१- यदि जन्म कुंडली में लग्नेश 6,8,12 भाव में स्थित हो तो उस स्थिति में मात्र लग्नेश के बीज मंत्रों का जाप करके बीज मंत्र सिद्ध करना चाहिए। लग्नेश का रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।

 

२- यदि लग्नेश शुभ भाव में स्थित हो किंतु डिग्री कम हो उस स्थिति में लग्नेश का रत्न धारण कर सकते हैं अथवा लग्नेश के बीज मंत्र का जाप भी करके लग्नेश को बलवान बनाया जा सकता है।

 

३- यदि लग्नेश के आगे और पीछे पाप ग्रह अर्थात मारक ग्रह राहु केतु या शनि स्थित हो उस स्थिति में लग्नेश के बीज मंत्र का जाप करके लग्नेश को पाप कर्तरी से मुक्त करवाया जा सकता है।

 

४- यदि लग्नेश अपनी नीच राशि में स्थित हो उस स्थिति में मात्र लग्नेश के बीज मंत्र का जाप किया जाना चाहिए रत्न कदापि धारण नहीं करें।

 

५-लग्नेश सूर्य से अस्त हो तो उस स्थिति में लग्नेश का रत्न धारण कर सकते हैं अथवा लग्नेश की बीज मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।

 

इस प्रकार उपयुक्त उपाय करके लग्नेश को बलवान कर सकते हैं और कुंडली में बनने वाले लगन दोष से मुक्त हो होकर अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं।

Sunday, 17 October 2021

ग्रहों से उत्पन्न होने वाले समस्या और रोग तथा कुंडली रोग होने के योग।।।

जब सूर्य रोग कारक ग्रह हो तब उसे निम्नलिखित रोगों की संभावना होती है ,अर्थात सूर्य निम्नलिखित रोग के कारक है -

 

पित्त,उष्द ज्वर,(बुखार)शरीर मे जलन रहना,अपस्मार(मिर्गी) हृदय रोग,नेत्र रोग,चर्मरोग,अस्थि श्रुति,शत्रुओं से भय,अग्नि शस्त्र या विष से पीड़ा,स्त्री या पुत्रो से कष्ट,सर्प से भय।।।

 

चन्द्रमा से निम्नलिखित समस्याए उत्पन्न हो सकती है।।

 

निद्रा रोग,आलस्य,कफ,अतिसार,शीतज्वर,जल से भय,किसी भी चीज़ में रुचि होना,पीलिया,खून खराबी,।।

 

मंगल से होने वाली समस्या/रोग।।

 

तृष्णा (बहुत अधिक प्यास लगना) वायु जनित पित्त या प्रकोप ,पीतज्वर,अग्नि विष या सस्त्र से भय, कुष्ठ,नेत्र रोग ,पेट मे फोड़ा अपस्मार मज़्ज़ा से सम्बंधित रोग ,खुजली ,चमड़े में खुरदुरापन,देह भंग शरीर का कोई भाग टूट जाना अग्नि से भय,चोरों से भय,भाई मित्र पुत्रो से कलह,शत्रुओं से परेशानी,।।।

 

बुध उत्पन्न होने वाली समस्या।।

 

भ्रांति,(वहम)सोचने समझने की शक्ति में अव्यवस्था विचार में तर्क शक्ति कम हो जाए,व्यर्थ की चिंता बिना कारण भय, नेत्र रोग गले का रोग ,नासिका रोग,वात,पित्त,कफ,विष की बीमारी चरम रोग,पीलिया,दुःस्वप्न,खुजली,इत्यादि।।

 

 

 

 

बृहस्पति से होने वाले रोग/समस्या-

 

गुल्म पेट का फोड़ा,अंतड़ियों का ज्वर,मूर्छा ,कान के रोग,देव् स्थान सम्बन्धी पीड़ा देव् स्थान मन्दिर आदि को लेकर मुकदमे बाजी,ट्रस्ट बैंक के मामलों के कारण कलह ,अदालती कार्यवाही,अपने गुरु के साथ सम्बन्ध खराब होना।।

 

शुक्र से होने वाले समस्या और रोग-

 

रक्त की कमी के कारण पीलापन,कफ और वायु से दोष,से नेत्र रोग मधुमेह,मूत्र रोग जननेन्द्रियों आदि में रोग पेशाब करने में कठिनाई,या कष्ट, प्रोस्ट्रेट,ग्लैंड का बढ़ जाना वीर्य की कमी,वैवाहिक जीवन मे समस्या,सम्भोग सुखों में समस्या,चेहरे पर कांति हीनता शरीर का सुखना आदि रोग और समस्या शुक्र के कारण होते है।।

 

शनि से होने वाले रोग और समस्याए-

 

वात कफ के द्वारा उत्पन्न रोग,टांग में दर्द या लंगड़ाना,भ्रांति,कुक्षी(कांख में रोग)शरीर के भीतर बहुत उष्णता हो जाए,नौकरों से कष्ट,-नौकर नौकरी छोड़ कर भाग जाए या धोखा देने लगे,भार्या और पुत्र से सम्बन्धी विपत्ति,शरीर के किसी भाग में चोट लगना ,हृदय,ताप ,मानसिक चिंता परेशानी,पिशाच आदि की पीड़ा,आपत्ति,,।।

 

राहु से होने वाली समस्या और रोग,-

 

हृदय रोग,हृदय में ताप, जलन,कोढ़,दुर्मति,भ्रांति,विष के कारण उत्पन्न हुई बीमारियां ,पैर में पीड़ा या चोट,स्त्री पुत्रो को कष्ट या उनके कारण कष्ट,सर्प और पिशाचों से भय,।।

 

केतु से होने वाली समस्या और रोग-

शत्रुओं से भय,मानसिक चिंता और परेशानी राहु के समान केतु का भी प्रभाव होता है।।।

 

यदि चन्द्र सूर्य बारहवे या  दूसरे स्थान में और उन पर मंगल और शनि देखते हो तो नेत्र से सम्बंधित रोग हो सकता है ।।

 

यदि तीसरे और ग्यारहवे घर और गुरु मंगल शनि से युत या दृष्ट हो तो सम्भवता कान का रोग हो सकता है।।

 

मंगल पंचम में होने से उदर रोग हो सकता है।।(कोई भी उग्र ग्रह सूर्य,मंगल,शनि,राहु,केतु,पंचम में होने से पेट से सम्बंधित समस्या उत्पन्न करता है।।

 

शुक्र यदि सप्तम या अष्टम में पाप प्रभाव में हो तो प्रमेह या मूत्र रोग उत्पन्न कर सकता है।।

 

यदि छठवे भाव भाव का स्वामी या अष्टमेश सप्तम में या छठवे भाव का स्वामी अष्टम में पाप प्रभाव में हो तो गुदा रोग हो सकता है।।।

 

आगे भी इस विषय मे चर्चा जारी रखेंगे यह सिर्फ कुछ योग ही है और बहुत से योग है जिनके बारे में आगे चर्चा करेंगे

Sunday, 3 October 2021

चूना जो पान में लगा के खाया जाता है , उसकी एक डिब्बी ला कर घर में रखे .

 

#चूना जो पान में लगा के खाया जाता है , उसकी एक डिब्बी ला कर घर में रखे .

 

- यह सत्तर प्रकार की बीमारियों को ठीक कर देता है . गेहूँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी #पीलिया ठीक हो जाता है .

 

- चूना #नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है - अगर किसी के शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो साल डेढ़ साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे . जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उन्हें भी इस चूने का सेवन करना चाहिए .

 

- #शुगर  रोज़ सुबह ख़ाली पेट एक गिलास पानी में एक छोटे चने के बराबर चुना मिलकर पीने से शुगर जड़ से ख़त्म हो जाती हैं ( समय समय पर जाँच करवाते रहे.. वरना शुगर का लेवल माइनस भी हो सकता हैं )

 

- विद्यार्थीओ के लिए चूना बहुत अच्छा है जो #लम्बाई बढाता है - गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिला के खाना चाहिए, दही नही है तो दाल में मिला के या पानी में मिला के लिया जा सकता है - इससे लम्बाई बढने के साथ साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छी होती है । जिन बच्चों की बुद्धि कम है ऐसे मतिमंद बच्चों के लिए सबसे अच्छी दवा है चूना . जो बच्चे बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करता है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चूना खिलाने से अच्छे हो जायेंगे ।

 

- बहनों को अपने #मासिक_धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अच्छी दवा है चूना । मेनोपौज़ की सभी समस्याओं के लिए गेहूँ के दाने के बराबर चूना हर दिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना चाहिए . इससे ओस्टीओपोरोसिस होने की संभावना भी नहीं रहती .

 

- जब कोई माँ #गर्भावस्था में है तो चूना रोज खाना चाहिए क्योंकि गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा केल्शियम की जरुरत होती है और चूना केल्शियम का सबसे बड़ा भंडार है . गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए अनार के रस में - अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फायदे होंगे - पहला फायदा होगा के माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नॉर्मल डीलिवरी होगी , दूसरा बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हृष्ट पुष्ट और तंदुरुस्त होगा , तीसरा फ़ायदा वो बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया , और चौथा सबसे बड़ा लाभ है वो बच्चा बहुत होशियार होता है बहुत Intelligent और Brilliant होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है .

 

- चूना #घुटनेकदर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है , कंधे का दर्द ठीक करता है, एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चुने से ठीक होता है . कई बार हमारे रीढ़ की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दूरी बढ़ जाती है Gap आ जाता है जिसे ये चूना ही ठीक करता है . रीढ़ की हड्डी की सब बीमारिया चूने से ठीक होती है . अगर हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे ज्यादा चूने में है . इसके लिए चूने का सेवन सुबह खाली पेट करे .

 

- अगर मुंह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चूना खाने से बिलकुल ठीक हो जाता है , मुंह में अगर छाले हो गए है तो चूने का पानी पिने से तुरन्त ठीक हो जाता है । शरीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए , एनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अच्छी दवा है ये चूना . गन्ने के रस में , या संतरे के रस में , नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में डाल कर चूना ले . अनार के रस में चूना पिने से खून बहुत बढता है , बहुत जल्दी खून बनता है - एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह खाली पेट ले .

 

- भारत के जो लोग चूने से पान खाते है, बहुत होशियार है और वे महर्षि वाग्भट के अनुयायी है . पर पान बिना तम्बाखू , सुपारी और कत्थे के ले . तम्बाखू ज़हर है और चूना अमृत है . कत्था केन्सर करता है, पान में सौंठ , इलायची , लौंग , केसर , सौंफ , गुलकंद , चूना , कसा हुआ नारियल आदि डाल के खाए .

 

- अगर घुटने में घिसाव आ गया हो और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो तो भी जरुरत नही चूना खाते रहिये और हरसिंगार ( पारिजातक या प्राजक्ता ) के पत्ते का काढ़ा पीजिये , घुटने बहुत अच्छे काम करेंगे ।

 

चूना खाइए पर चूना लगाइए मत  .

ये चूना लगाने के लिए नही है खाने के लिए है.

Saturday, 20 April 2019

जनेऊ क्या है और इसकी क्या महत्ता है ?


भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥

जनेऊ क्या है : आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है।

यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।

तीन सूत्र क्यों : जनेऊ में मुख्यरूप से तीन धागे होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और  यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है। यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है।यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है।

नौ तार : यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्या नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं।

पांच गांठ : यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है।

वैदिक धर्म में प्रत्येक  आर्य का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। प्रत्येक  आर्य को जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे।

जनेऊ की लंबाई : यज्ञोपवीत की लंबाई 96 अंगुल होती है। इसका अभिप्राय यह है कि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए।

चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर कुल 32 विद्याएं होती है। 64 कलाओं में जैसे- वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि।

जनेऊ के नियम :
1.यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका स्थूल भाव यह है कि यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। अपने व्रतशीलता के संकल्प का ध्यान इसी बहाने बार-बार किया जाए।

2.यज्ञोपवीत का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए, तो बदल देना चाहिए। खंडित यज्ञोपवीत शरीर पर नहीं रखते। धागे कच्चे और गंदे होने लगें, तो पहले ही बदल देना उचित है।

4.यज्ञोपवीत शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता। साफ करने के लिए उसे कण्ठ में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं। भूल से उतर जाए, तो प्रायश्चित करें ।

5.मर्यादा बनाये रखने के लिए उसमें चाबी के गुच्छे आदि न बांधें। इसके लिए भिन्न व्यवस्था रखें। बालक जब इन नियमों के पालन करने योग्य हो जाएं, तभी उनका यज्ञोपवीत करना चाहिए।

चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।

वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।

कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।

कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।

माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित है।
जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है।

जनेऊ से पवित्रता का अहसास होता है। यह मन को बुरे कार्यों से बचाती है। कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से दूर रहने लगता है।

लग्न दोष और लग्न दोष निवारण उपाय

  लग्न दोष :-     जन्मकुंडली में सबसे महत्वपूर्ण पार्ट जन्म कुंडली का लग्न और लग्नेश होता है। अतः जन्म कुंडली में लग्न भाव का स्वामी लग्...